तिरिया चरित्तरः यथार्थ दर्शाती एक कहानी और फिल्म

Poster of film Triyacharitra

Poster of film Triyacharitra Source: National Film Development Corporation of India (NFDC)

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उपन्यासकार शिवमूर्ति की ’तिरिया चरित्तर' कहानी पर, इसी नाम पर बनी बासु चटर्जी द्वारा निर्देशित फिल्म आपको एक ऐसे यथार्थ से परिचित कराती है जो कठोर सत्य है और आप में बेचैनी भर देता है।


उपन्यासकार शिवमूर्ति की लेखनी ग्रामीण जीवन की निर्दयी और कठोर सच्चाई को उजागर करती है। इंडिया इनसाइड के सम्पादक अरुण सिंह कहते हैं कि शिवमूर्ति अपनी रचनाधर्मिता की वजह से आज उस स्थान पर हैं जहां विरले ही पहुँच पाते हैं। 


खास बातें-

  • उपन्यासकार शिवमूर्ति की कई कहानियों का रंगमंच पर मंचन हुआ है और फिल्में बनी हैं।
  • तिरिया चरित्तर की नायिका विमली का चरित्र, कहानीकार शिवमूर्ति के व्यक्तिगत अनुभवों से बना। 
  • फिल्म तिरिया चरित्तर (1995) के मुख्य कलाकार - राजेश्वरी, नसीरुद्दीन शाह, और ओमपुरी 

एसबीएस हिन्दी से बात करते हुए श्री शिवमूर्ति जी कहते हैं कि उनकी कहानियों में नायिका कमजोर तबके से आती हैं, वे जुर्म सहती हैं, वे हार तो जाती हैं लेकिन वह कायर नहीं हैं। वे मैदान नहीं छोड़तीं। 

अपनी इस कहानी के बारे में वह बताते हैं, “यह कहानी 1987 में हँस पत्रिका में छपी थी। बासु को यह कहानी पसंद आयी और वह इस पर फिल्म बनाना चाहते थे। मैंने कहा कि तभी यह कहानी दूंगा जब वह इस कहानी का न तो अंत बदलेंगे और न ही इसकी आत्मा। और बासु चटर्जी ने इस पर हामी भरी।"
Indian actor Naseeruddin Shah. He played the role of Bisram in Basu Chatterjee film 'Tiriya Chariter' made in 1995
Indian actor Naseeruddin Shah. He had played the role of Visram (father in-law) in Basu Chatterjee film 'Tiriya Chariter' made in 1995 Source: Image source
फिल्म के लिये लिखने पर काफी मेहनत की गयी। स्क्रीन प्ले को शिवमूर्ति जी ने पढ़ा और संतुष्‍ट रहे। यूँ फिल्म को बहुत सराहा गया लेकिन वह व्यवसायिक सफलता नहीं मिली जिसकी अपेक्षा थी। कई कारण रहे। स्वयम् बासु चटर्जी ने भी एक इन्टरव्यू में कहा कि फिल्म डिवीजन की तरफ से उन पर दबाव था नसीरुद्दीन शाह को ससुर विसराम का रोल देने के लिये। 

श्री शिवमूर्ति को भी यही लगता है, "सही है। उन्होंने भी कहा कि विसराम के रोल में पंकज कपूर या रघुवीर यादव अधिक उपयुक्त रहते। नसीर कुछ लाउड हो गये थे राजेश्वरी के मुकाबले में। इसका एक कारण यह भी रहा कि बासु ने उन्हें बहुत महंगा कुर्ता पहना दिया था। इससे पात्र की विश्वसनीयता घटी।"  

इसी तरह शिवमूर्ति जी ने फिल्म के दौरान में नायिका विमली की बकरी के ही बदल जाने के साथ साथ, फिल्म के अन्य पात्रों की वेशभूषा और मेकअप आदि में विसंगति अनुभव की।
"फिल्म में कुछ कमियां मुझे खलीं लेकिन बासु का कहना था कि इन छोटी मोटी बातों से फिल्म के कुल असर पर कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन चाहे कथानक में परिवर्तन नहीं हुआ लेकिन मुझे लगता है कि कुछ कमियों का प्रभाव पड़ा। हां, इसमें कोई दो राय नहीं कि सबको फिल्म बहुत अच्छी लगी और जिन्होंने यह कहानी नहीं पढ़ी थी, उन्हें तो फिल्म अत्याधिक ही अधिक पसंद आयी।" Image
( चित्र साभार - इंडिया इनसाइड पत्रिका, भारत - नाटककर्मी ममता पंडित के सौजन्य से जिन्होंने तिरिया चरित्तर नाटक में मुख्य भूमिका निभायी) 

तिरिया चरित्तर फिल्म को वैसे पहले जाने माने नाटककार मोहन महर्षि बनाना चाहते थे। कॉन्ट्रैक्ट भी साइन हो गया था लेकिन फिर बासु चटर्जी के जोर देने पर ही, सब लोग राजी हो गये और फिल्म डिवीजन से मिले फंड से यह फिल्म बनी थी।

फिल्म के अतिरिक्त यह कहानी इतनी पसंद की गयी है कि भारत में समय समय पर अभी तक कई बार रंगमंच पर इसका सफल मंचन किया जाता रहा है।
Theatre performance of Tiriya Chariter in India
Theatre performance of Tiriya Chariter in India Source: India Inside
(चित्र साभार - इंडिया इनसाइड पत्रिका, भारत- नाटककर्मी ममता पंडित के सौजन्य से जिन्होंने तिरिया चरित्तर नाटक में मुख्य भूमिका निभायी) 

तिरिया चरित्तर उस लड़की की कहानी है जो एक गरीब ग्रामीण परिवेश से आती है। उसपर घर के खर्च की जिम्मेदारी है।बचपन में हुई शादी और फिर परिस्थितियों के चलते उसका गौना हो जाना। और फिर पति की गैर-मौजूदगी में लड़की का उसके ससुर द्वारा रेप किया जाता है. और जब इंसाफ की घड़ी आती है तो समूचा समाज पीड़िता को ही गुनाहगार साबित करने पर उतारू हो जाता है. पंचायत का फैसला आता है कि उसे  दाग दिया जाये अर्थात् जीवन भर के लिये उसके माथे पर गरम कंछुल से निशान बना दिया जाए। और समाज उसे ‘त्रियाचरित्र’ का तमगा देता है.     

'तो बदले जमाने में सोहाग से दगा की सजा है, सोहाग की निशानी, बिंदी-टिकुली लगानें की जगह, बीचोबीच माथे पर दगनी। जिंदगी भर के लिए कलंक-टीका।’  

( कहानी तिरिया चरित्तर से उद्यत)

शिवमूर्ति जी कहते हैं
अब कहानी का शीर्षक - तिरिया चरित्तर इस बात की आयरनी है कि सारा दोष पुरुष का है लेकिन दोष औरत पर ही आता है। आज तक भी समाज में चरित्र के पैमाने कुछ ख़ास बदले नहीं हैं.
'लाल डांडीवाली कलछुल लेकर आगे बढ़ता है विसराम। इतने दिनों बाद फिर दुहराई जा रही है महाभारत की कथा-भरी सभा में लाचार औरत की बेइज्जती!

इसके कारण भी कोई महाभारत होगा क्या?

काहे भाई कोई रानी-महारानी है?           

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पंचायत टूट रही है। हवा में भोर की ठंड आ गर्इ है। पुजारीजी भारी मन से कहते हैं - तिरिया चरित्तर समझना आसान नहीं। बाबा भरथरी ने झूठ थोड़े कहा है - तिरिया चरित्रम् पुरूषस्य भाग्यम्...

बीसों सिर एक साथ सहमति में हिलते हैं।'  ( कहानी तिरिया चरित्तर से उद्यत - कहानी की कुछ अंतिम पंक्तियाँ) 

Writer Shivmurti
Writer Shivmurti Source: Supplied


नायिका के चरित्र को इतने यथार्थ के करीब से कैसे लिख सके तो श्री शिवमूर्ति बताते हैं कि उन्हें कहानी के इस चरित्र को रचना नहीं पड़ा ब्लकि उसने खुद ही कहानी में जगह बना ली क्योंकि वह इस पात्र से स्वयम् कई बार, कई अवसरों पर मिल चुके हैं। 

"विमली का चरित्र उन तीन लड़कियों की कहानी है जो मैंने बचपन से लेकर इस कहानी को लिखते समय तक अलग अलग समय पर देखी थी, महसूस की थी।" 

तिरिया चरित्तर में ग्रामीण जीवन की  गरीबी,  संघर्ष, शोषण, जीवन की समस्याएं और उसकी उलझनें उभर कर सामने आती हैं। कहानी में सामजिक उद्देश्य और समाज की मानसिकता स्पष्ट है और उस पर व्यावसायिकता या मनोरंजन हावी नहीं हो पाता।

शिवमूर्ति की यह कहानी ’तिरिया चरित्तर’ के मुहावरे को ’पुरूष प्रपंच’ के रूप में दर्शाती  हुयी समाज की विद्रूपताओं पर करारा प्रहार करती है।


 

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